पेट (आमाशय) का कैंसर
Stomach Cancer in Hindi
पेट के कैंसर को गैस्ट्रिक कैंसर (gastric cancer) भी कहते हैं। खाना निगलने के बाद, अन्नप्रणाली (ग्रासनली; food pipe) से होकर गुजरता है। खाना फिर पेट के ऊपरी हिस्से में एक थैली जैसे अंग में प्रवेश करता है जिसे आमाशय (स्टमक; stomach) कहा जाता है। पेट (आमाशय) भोजन ग्रहण करता है और गैस्ट्रिक रस स्रावित करके इसे पचाना शुरू कर देता है। पेट गैस्ट्रिक रस के साथ मिले हुए भोजन को छोटी आंत के पहले हिस्से में भेज देता है।
कैंसर कैसे बनता है ?
कैंसर तब शुरू होता है जब कोशिका के डीएनए में कोई त्रुटि (म्यूटेशन) आ जाती है। ये कोशिकाएं फिर अनियंत्रित रूप से विभाजित होती हैं और बढ़ती रहती हैं। ये कोशिकाएं मिल कर कैंसर बनाती हैं। पेट की दीवार ऊतक की पांच परतों से बनी होती है। पेट का कैंसर, जिसे गैस्ट्रिक कैंसर भी कहते हैं, पेट की सबसे भीतरी परत में म्यूकस-उत्पादक कोशिकाओं में शुरू होता है। यह फिर बढ़ता है और फैलता है। यह पहले पेट की दीवार में फैलता है और फिर बढ़ कर आस पास के उत्तकों में फैल जाता है। बाद में ये जिगर (यकृत), फेफ़ड़े और पेरिटोनियम में फैल जाता है।
पेट का कैंसर दुनिया में 5वां सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर है। दुनिया भर में हर साल गैस्ट्रिक कैंसर 10 लाख से अधिक लोगों को होता है।
भारत में पेट का कैंसर
पेट का कैंसर, भारत में कैंसर से मरने वाले लोगों का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। भारत में पेट का कैंसर विकसित देशों की तुलना में कम होता है। भारत के दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्यों में पेट का कैंसर ज़्यादा होता है। अनुमान है कि लगभग 50,000 नए गैस्ट्रिक कैंसर के मामले हर साल सामने आएंगे। पेट का कैंसर भारत में चौथा सबसे आम कैंसर है।
पेट के कैंसर के प्रकार
- एडेनोकार्सिनोमा (adenocarcinoma); सबसे आम उपप्रकार (90-95%)
- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्ट्रोमल ट्यूमर (GIST)
- न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर (NET)
- लिम्फोमा
पेट के कैंसर के कारण और जोखिम कारक (risk factors)
जिस किसी भी चीज से किसी को कैंसर होने का खतरा बढ़ता है, उसे जोखिम कारक कहते हैं। जोखिम कारक बीमारी करता नहीं है यह केवल जोखिम को बढ़ाता है। कुछ लोगों में कई जोखिम कारक होने के बावजूद कैंसर नहीं होता, जबकि कुछ लोगों को कोई जोखिम कारक नहीं होने के बावजूद कैंसर हो जाता है।
पेट के कैंसर के लिए जोखिम कारक हैं:
- वृद्धावस्था
- महिलाओं की तुलना में पुरुषों को पेट कैंसर होने का खतरा दोगुना होता है
- एच पाइलोरी (H. pylori) नामक एक जीवाणु से संक्रमण
- पेट में लगातार सूजन (gastritis)
- परनीसियस एनीमिया
- पेट में कुछ प्रकार के पॉलिप्स
- धूम्रपान
- मोटापा
- स्मोक्ड, अचारित या नमकीन खाद्य पदार्थों से युक्त आहार
- कम फल और सब्जियों वाला भोजन
- पेट के कैंसर का पारिवारिक इतिहास
पेट के कैंसर के लक्षण
पेट का कैंसर अन्य कैंसरों की तुलना में अपेक्षाकृत कम होता है, परन्तु इस रोग के सबसे बड़े खतरों में से एक है इसका पता न लगना। पेट के बाकी कैंसर की तरह गैस्ट्रिक कैंसर के भी शुरुआती चरणों में सामान्यतः कोई लक्षण नहीं होते हैं। यह अक्सर शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने के बाद पकड़ में आता है । इससे इसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है।
पेट के कैंसर के लक्षणों में शामिल है:
- अपच, पेट में जलन और पेट फूलना
- लगातार कमजोरी या थकान महसूस करना
- भूख न लगना
- वजन कम होना
- हीमोग्लोबिन में कमी (एनीमिया)
- पेट में दर्द या बेचैनी
- मल में लाल खून का धब्बा या काले रंग का मल
- थोड़ी मात्रा में भोजन करने के बाद पेट भरा हुआ महसूस होना
- मतली और उल्टी (रक्त के साथ या इसके बिना)
- पेट के ऊपरी हिस्से में परेशानी
ध्यान दें कि इनमें से कई लक्षण पेट के कैंसर के अलावा अन्य बीमारियों में भी हो सकते हैं।
पेट के कैंसर की जांच एवं परीक्षण (डायग्नोसिस)
स्वास्थ्य परीक्षण
एक चिकित्सक द्वारा लक्षणों को समझना और संकेतों की जांच करना बीमारी तक पहुंचने के लिए जरूरी है।
एंडोस्कोपी
एंडोस्कोपी से पेट के कैंसर की पुष्टि होती है।
एण्डोस्कोप एक लचीली पतली ट्यूब होती है, जिसमें एक कैमरा होता है। यह आपके पेट के अंदर की छवि को एक मॉनिटर पर प्रसारित करता है। यदि कोई असामान्यता मिलती है, तो उसमें से एक छोटा सा नमूना भी लिया जाता है, जिसे बायोप्सी कहा जाता है।
बायोप्सी
बायोप्सी का अर्थ है कि ट्यूमर के एक छोटे से हिस्से का नमूना लेना और माइक्रोस्कोप के द्वारा इसकी जांच करना। यह एक पैथोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है। यदि आवश्यक हो तो बायोप्सी नमूनों पर जीन परीक्षण भी किया जा सकता है।
कैंसर का प्रसार (चरण) निर्धारित करना (स्टेजिंग)
पेट के कैंसर की गंभीरता या चरण का अनुमान यह देख कर लगाया जाता है कि ट्यूमर पेट में कहां है, यह कितनी हद तक पेट के ऊतकों में फ़ैल चूका है, और अगर यह पेट के बाहर शरीर के अन्य आंतरिक अंगो में भी फैल गया हो।
कैंसर की गांठ से कैंसर कोशिकाएं निकलती है और शरीर में तीन प्रकार से फैलती हैं;
- रक्त के माध्यम से
- लिंफेटिक के माध्यम से
- सीधे आसपास के उत्तकों में
कैंसर का फैलाव स्थानीय हो सकता है, पेट, उसके आसपास के उत्तकों में और लिंफ नोड्स में। या दूरवर्ती हो सकता है, लिवर, फेफड़े और पेट के अंदर की परत (पेरीटोनियम) में। कैंसर जब दूर के अंगों में फैल जाता है तो उसे मेटास्टैसिस (metastasis) कहते हैं।
स्टेजिंग से बीमारी के प्रसार का पता चल रहा है। पेट के कैंसर का पता चलने के बाद, हम यह पता लगाने के लिए परीक्षण करते हैं कि ट्यूमर कितना फैल गया है। इसके लिए निम्नलिखित जांचों में से हम कुछ टेस्ट करते हैं।
रक्त परीक्षण: रक्त में विभिन्न प्रकार के तत्वों की जांच की जाती है। कुछ रोगियों में एनीमिया (कम हीमोग्लोबिन) होता है। इसके अलावा, लिवर और किडनी के टेस्ट भी किए जाते हैं।
कंप्यूटेड टोमोग्राफी (CT) स्कैन: इस टेस्ट में मरीज को एक सीटी स्कैनर में रखा जाता है। फिर एक्स-रे की किरणें चारों तरफ से अंदरूनी अंगों की छवि लेती है। कंप्यूटर इन छवियों को विकसित कर हमें अंदरूनी स्थिति के बारे में सटीक जानकारी देते हैं। कंट्रास्ट का इंजेक्शन देने से हमें बेहतर छवि मिलती है।
पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी (PET) स्कैन: कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज ज्यादा मात्रा में लेती हैं। इस टेस्ट में रेडियोएक्टिव ग्लूकोज (18एफ-फ्लोरोडीऑक्सी; FDG) का इंजेक्शन देते हैं। यह रेडियोएक्टिव ग्लूकोज ट्यूमर में चला जाता है जिसे हम स्कैनर से देख सकते हैं।
एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड (EUS): यह अंदर से पेट का अल्ट्रासाउंड है। यह छोटे ट्यूमर में उपयोगी होता है। यह देखता है कि कैंसर पेट की परतों और आस-पास के लिम्फ नोड्स में कितना फैल गया है।
लेप्रोस्कोपी: सीटी और PET स्कैन छोटे ट्यूमर को नहीं खोज सकते । लैप्रोस्कोपी में, आपके पेट में एक छोटे छेद के माध्यम से एक पतला कैमरा डाला जाता है और यकृत और पेरिटोनियल सतह (पेट के अंदर की झिल्ली) पर छोटे ट्यूमर का पता लगाया जा सकता है।
ये टेस्ट्स हमें कैंसर को एक चरण प्रदान करने में मदद करते हैं। मोटे तौर पर हम कैंसर को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं:
स्थानीयकृत - कैंसर उस अंग तक सीमित है जिसमें यह शुरू हुआ था।
स्थानीय प्रसार - कैंसर आसपास के लिम्फ नोड्स में फैल गया है या उस अंग की दीवार से बाहर आ गया है जिसमें यह शुरू हुआ था।
दूर तक फैला हुआ - कैंसर दूर के अंगों तक फैल गया है, जो ट्यूमर की उत्पत्ति के अंग से दूर है। इसे मेटास्टेसिस कहा जाता है।
TNM (ट्यूमर, नोड और मेटास्टेसिस) वर्गीकरण
यह वर्गीकरण अमेरिकन जॉइंट कमेटी ऑन कैंसर (AJCC) द्वारा विकसित किया गया है। इसका उपयोग कैंसर की स्टेज के सटीक वर्गीकरण के लिए किया जाता है। यह निम्नलिखित तीन प्रमुख तत्वों पर आधारित है और स्टेज I से लेकर IV तक होता है।
ट्यूमर की माप (T): पेट की परतों में कैंसर कितनी दूर तक बढ़ गया है? क्या कैंसर आस-पास की संरचनाओं या अंगों तक पहुंच गया है?
पास के लिम्फ नोड्स (N) में फैला हुआ: क्या कैंसर पास के लिम्फ नोड्स में फैल गया है? और कितने लिंफ नोड्स में?
दूर के अंगों तक फैला हुआ (मेटास्टेसिस) (M): क्या कैंसर दूर के लिम्फ नोड्स या दूर के अंगों जैसे लिवर या फेफड़ों में फैल गया है?
टी, एन और एम के आगे संख्या और अक्षर लिखे जाते हैं जो और ज्यादा विवरण देते हैं। संख्या जितनी अधिक होती है कैंसर उतना ही बढ़ा हुआ होता है। टी, एन और एम से मिली जानकारी को मिलाकर हम कैंसर को एक चरण प्रदान करते हैं। कोलोरेक्टल कैंसर चरण I से IV तक होता है।
चरण I से III तक स्थानीयकृत रोग होता है और चरण IV फैला हुआ कैंसर (मेटास्टैटिक रोग) है।
कैंसर से उबरने की संभावना इलाज के समय कैंसर के चरण पर निर्भर करती है। जितना कम चरण उतनी बेहतर संभावना।
पेट के कैंसर का उपचार
पेट के कैंसर का उपचार ट्यूमर के चरण पर निर्भर करता है। शुरुआत के चरणों के पेट के कैंसर का प्राथमिक उपचार सर्जरी है।
बढे हुए कैंसर (स्थानीय प्रसार) में सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए, कीमोथेरेपी और/या रेडियोथेरेपी और सर्जरी को संयोजित किया जाता है जिसे मल्टीमॉडल उपचार कहते हैं। ट्यूमर के प्रसार के आधार पर, कीमोथेरेपी या कीमोराडिएशन सर्जरी से पहले या सर्जरी के बाद दिया जा सकता है।
स्थानीय पेट के कैंसर के लिए शल्यक्रिया - गैस्ट्रेक्टमी (gastrectomy)
प्रारंभिक चरण के कैंसर के लिए शल्य चिकित्सा प्राथमिक उपचार है। इसमें आंत के कैंसर वाले हिस्से को आस पास के लिम्फ नोड्स और omentum के साथ निकाला जाता है। फिर आंत के कटे हुए हिस्सों को आपस में जोड़ कर आंत की निरंतरता को पुन: स्थापित करते हैं (एनास्टोमोसिस)।
गैस्ट्रेक्टोमी करने के दो तरीके हैं;
ओपन, और
लेप्रोस्कोपिक या रोबोटिक
ओपन सर्जरी में, पेट पर सर्जरी करने के लिए एक ही लंबा चीरा लगाया जाता है।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी ऑपरेशन करने की एक विशेष तकनीक है, जिसे की-होल सर्जरी, मिनिमली इनवेसिव सर्जरी या मिनिमल एक्सेस सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है। इसमें, बड़े चीरे के बजाय, आपके पेट के ऊपर छोटे छोटे छेदों द्वारा विशेष उपकरणों और एक कैमरे को डाल कर ऑपरेशन किया जाता है। ये उपकरण विशेष बनावट से पतले एवं लम्बे बनाये जाते हैं। कैमरा एक बड़ी स्क्रीन पर आपके पेट के अंदर की उच्च रिज़ॉल्यूशन छवियों को प्रोजेक्ट करता है, जिसे देख कर सर्जन पेट के अंदर ऑपरेशन करते हैं। यह तकनीक पिछले कुछ दशकों में सर्जिकल फील्ड के सबसे महत्वपूर्ण अविष्कारों में से एक है जिसने पेट की सर्जरी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। सर्जरी की यह तकनीक अब पेट के ज़्यादातर ऑपरेशन्स के लिए उपलब्ध एवं मान्य है। इस तकनीक का उपयोग पेट के कैंसर के ऑपरेशन में भी लाभदायक है।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के लाभ
पेट की ओपन सर्जरी में बड़ा चीरा लगता है और इसकी वजह से ठीक होने में वक़्त लगता है और अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ता है। मिनिमली इनवेसिव सर्जरी का अर्थ है "कम दर्द", "न्यूनतम निशान" और "तेज़ रिकवरी"। आईसीयू और अस्पताल में कम रहना पड़ता है। बड़े मॉनिटर पर पेट के अंदर का दृश्य बड़ा होने के कारण सर्जरी के दौरान रक्त की हानि कम होती है। आप जल्दी से चलना और मुँह से खाना शुरू कर सकते हैं। ओपन सर्जरी की तुलना में इन्फेक्शन और हर्निया का खतरा भी कम होता है।
बढ़े (फैले) हुए पेट के कैंसर का उपचार
कीमोथेरेपी
कीमोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए दवाओं का उपयोग करती है। बेहतर परिणाम के लिए कई दवाओं को एक साथ दिया जाता है। इन्हें एक चक्र के रूप में विशिष्ट दिनों पर एक विशिष्ट क्रम में दिया जाता है।
Adjuvant chemo - स्थानीयकृत पेट के कैंसर के रोगियों में, कीमोथेरेपी आमतौर पर सर्जरी के बाद दी जाती है। यह उन कोशिकाओं को नष्ट करती है जो ऑपरेशन के बाद भी शरीर में रह जाती हैं। कीमोथेरेपी देने का निर्णय सर्जिकल चरण पर निर्भर करता है। इस तरह, कीमोथेरेपी कैंसर की पुनरावृत्ति और कैंसर से मृत्यु के जोखिम को कम करने में मदद करती है।
Neoadjuvant chemo - यदि ट्यूमर अत्यधिक बढ़ गया है, तो सर्जरी से पहले कीमोथेरेपी दी जाती है। इससे कैंसर छोटा हो जाएगा और बाद में ऑपरेशन से बेहतर परिणाम प्राप्त होगा।
Palliative chemo - मेटास्टैटिक (फैले हुए) कैंसर में कीमोथेरेपी जिंदगी को बढ़ाती है और उसकी गुणवत्ता में सुधार करती है।
टार्गेटेड थेरेपी (Targeted therapy)
पदार्थ जो सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाए बिना कैंसर कोशिकाओं की पहचान करते हैं और उन पर लक्ष्य करते हैं। पेट के कैंसर के लिए टार्गेटेड थेरेपी में HER2- targeted therapy और एंटी-एंजियोजेनेसिस थेरेपी शामिल हैं।
Immunotherapy
यह कैंसर से लड़ने के लिए रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) का उपयोग करता है। इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर थेरेपी इम्यूनोथेरेपी का एक प्रकार है।
विकिरण चिकित्सा (Radiation therapy)
विकिरण चिकित्सा कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए उच्च ऊर्जा एक्स-रे का उपयोग करती है। पेट के कैंसर वाले लोग आमतौर पर बाहरी बीम (external beam) विकिरण चिकित्सा प्राप्त करते हैं, जो शरीर के बाहर एक मशीन से दिया जाने वाला विकिरण है। ट्यूमर के आकार को कम करने या किसी भी शेष कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए सर्जरी के पहले या बाद में विकिरण चिकित्सा का उपयोग किया जा सकता है।
पैलिएटिव (palliative) उपचार
पैलिएटिव उपचार लक्षणों से राहत देता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है। यह तब दिया जाता है जब ट्यूमर बहुत उन्नत या प्रसारित होता है। बड़ी सर्जरी के लिए अनफिट मरीजों का भी पैलिएटिव इरादे से इलाज किया जाता है। पेट में रुकावट को एक स्टेंट (धातु की एक खोखली नली) डालकर खोला जा सकता है। कीमोथेरेपी जिंदगी को बढ़ाती है और उसकी गुणवत्ता में सुधार करती है। कभी-कभी इसके लिए सर्जरी जैसे कि गैस्ट्रोजेजूनोस्टोमी या गैस्ट्रेक्टोमी की भी आवश्यक्ता पड़ती है।
रोग का निदान (Prognosis)
सर्वाइवल रेट्स
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, पेट के कैंसर का पता चलने के बाद कम से कम पांच साल तक जीवित रहने वाले लोगों का प्रतिशत स्टेज II के लिए 68-82% और स्टेज III के कैंसर के लिए 18-54% है।
पेट के कैंसर के होने का खतरा कैसे कम करें ?
हम पेट के कैंसर के जोखिम कारकों को परिवर्तनीय और गैर-परिवर्तनीय में वर्गीकृत कर सकते हैं। आयु और आनुवंशिक कारक गैर-परिवर्तनीय हैं और हम इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन हम उन जोखिम कारकों से बचकर जोखिम को कम कर सकते हैं जिन्हें हम नियंत्रित कर सकते हैं।
हम निम्नलिखित कदम उठाकर अपने जोखिम को कम कर सकते हैं:
- अपना वजन नियंत्रण में रखें
- नियमित शारीरिक गतिविधि और व्यायाम करें
- एक स्वस्थ आहार खाएं जो विशेष रूप से रेशेदार फल, सब्जियों और साबुत अनाज से समृद्ध हो, जबकि संसाधित भोजन से बचें
- नमकीन और स्मोक्ड खाद्य पदार्थ का सेवन कम करें
- धूम्रपान और तंबाकू से बचें
- शराब का सेवन न करें
- एच पाइलोरी संक्रमण का इलाज़ करवाएं
सतर्क रहें! स्वस्थ रहें! और खुश रहें!
About Author
Dr. Nikhil Agrawal
MS, MCh
This site helps you understand the disease process, best treatment options and outcome of gastrointestinal, hepatobiliary and pancreatic diseases and cancers. Dr. Nikhil Agrawal is Director of GI-HPB Surgery and Oncology at Max Superspeciality Hospital Saket, New Delhi and Max Hospital, Gurugram in India.